Saturday, October 18, 2014

KHAADYA-AKHAADYA (EATABLES AND UNEATABLES)


The food habit is based on the religion, society and the region. Eatables of Hindus are different from Muslims and Christians and vice-versa. Similarly, people of different societies have different food habits. Food habit of cold zone is different to hot zone. Flood area people eat rice and fish where as dry zone people eat litti-chokaa.  


Sunday, October 12, 2014

पिता- बेटियाँ


गर्भ से लेकर मृत्यु पर्यन्त पुत्री के हिस्से में कष्ट ही कष्ट प्रदान किया गया है। बेटियां पति/ प्रत्येक पुरुष को पिता को डैटम्  मानकर तौलती हैं। पिता के दुर्गुणों को शून्य कर दीजिये तथा केवल गुणों को रहने दीजिये और तुला के एक पलड़ा पर रखिये। पति/अन्य पुरुषों के  सारे दुर्गुणों सहित गुण  (अर्थात् गुण- दुर्गुन ) को दूसरे पलड़े पर रखिये। अगर पति /अन्य पुरुष का पलड़ा बराबर या भारी है तो ठीक, नहीं तो आप का वैल्यू जीरो है। लेकिन पिता की नजर में पुत्री का मूल्य नेगेटिव टू जीरो है। इसीलिये गर्भ से लेकर मृत्यु पर्यन्त पिता उसके अस्तित्व को नकारने/मिटाने  में लगे रहते हैं। खासकर मैथिल पिता इस मामले में औअल हैं। आधुनिक औषधि विकास का सहारा लेकर गर्भ में ही कन्या-भ्रूण ह्त्या करने में यह समाज प्रथम पाङ्क्तेय है। संयोग से अगर गर्भ में नहीं  मार सका तो जन्म के बाद भी पूरा प्रयास करता है।


     

Friday, October 10, 2014

ठेस

सुनै छियै जे ठेस लगला स' बुद्धि बढ़ै छै। बच्चा मे सुनिऐ त' रस्ते-पेरे खूब ठेस लगबै छलहुँ, मुदा बुद्धि बढ़बाक कोनो स्पष्ट अनुभव नहि बुझायल। उलटे पैर'क आँगुर मे घा भ' जाइत छल। भ' सकैत अछि बढ़लो हैत, भगवान जाने। जखन बढलहुँ त' सुनलहुँ जे एकर विशेष अर्थ छैक। मानि लिय' जे आहाँ कोनो काज करै छी। ओइ मे आहाँ असफल भ' गेलहुँ। जाहि कारणे असफल भेलहुँ, ओकरा पता लगाक' ओकर निदान क'क' पुनः सफल भ' गेलहुँ। एकरे कहै छै - ठेस…… । कहबा मे भले जे हौ, मुदा प्रत्यक्ष अनुभव भेल जे व्यवहार मे एकर पालन बहुत कम व्यक्ति करैछ। शीला  दम्मा के रोगी छली। बच्चे स' ओ दम्मा के रोग स' परेसान छली। जखन-जखन जोर पकड़ै  छलनि त' मिरतुक्की भ' जाइ छली। रामूक विवाहक दिन हुनकर मोन किछु बेसिये खराप भ' गेल छलनि। शीलाक पति आ भाय सेहो बरियाती मे छला। भोरे बुधियार बजाब' गेल रहथिन्ह। पहिले दुसंझू बरियातिक प्रचलन छल। ओ दूनू गोटे गाम आबि हुनकर उपचार केलनि आ पुनः बेरखन पहुँचला। ओना ई बात दिगर जे ओइ दिन स' शीलाक पतिक  मुँह में हरदम ई शब्द आब' लगलन्हि- ' इमहर रामूक क विवाह आ ओमहर शीलाक दम्मा', मानो  रामूक  विवाह आ हुनक दम्मा मे कोनो अकाट्य सम्बन्ध हो वा ज' रामूक  विवाह नहि होइत त' शायद हुनका दम्मा नहि होइतनि। हुनकर  शब्द सूनि रामूक मोन  कोनादन कर' लगैत छलैक  आ होइ छलै  जे काश! हमर विवाह नहीं होइ त' शीला  दम्मा स' बाँचल रहितथि। शीलाक पति  के बाचालता'क रोग छनि। ओ निछच्छ बहीर सेहो छथि। बाचाल व्यक्ति के झूठ बेसी बाज' पड़ैत छै। शीला आब नहि  छथि। पतिक झूठ हुनका नीक नहि  लगैत छलनि। ओ सीना तानि   क' अपन गलत- सही कृत्य/ कथन पर अडिग रह' बाली छली। पति  नून-मिरचाइ लगाक' बात के सरिअबैत छला, मुदा पकर' बला बात के बुझिये जाइत छैक। ऐ मामला मे शीला के पति  स' नीक मानै छियैन। ओ अपन कृत्य के स्वीकारैत छली। पति  केवल नीक फल'क श्रेय लेब'बला छथि, दोष अनका  पर म'ढ़' मे निपुण। विषयान्तर भ' गेल। ठेस पर गप्प चलै छल आ शीला'क चर्चाक कारण कहै छी। दम्माके रोगी के गर्दा, अम्मत  दही, केरा इत्यादि स' परहेज कर' पड़ैत छैक। शीला जखन दुखित रहैत छली त' अहि बस्तु'क सेवन नहीं करवाक किरिया खाइत छली, मुदा ठीक भेलाक बाद  पुनः खट्टा स' खट्टा दही, केरा आ फटकीयाक गर्दा खूब लैत छली आ पुनः वीमार पड़ैत छली। ई घटना असंख्य बेर भेल हेतनि आ अंततः  रोग स' आनो -आनो वीमारी भ' गेलनि आ प्रस्थान कर' पड़लनि। अज्ञानी अबोध बच्चो के आगि मे पाकि गेलाक बाद पुनः डर होइत छैक आ ओ आगि स' दूर भागैत अछि। जानवरो के जै खेत मे पीटल जाउक / कोनो व्यक्ति भाला भोंकि दौक वा अन्य तरहेँ डेरा दौक त' पुनः ओइ खेत/व्यक्ति स' सदिखन भयभीत रहैछ। मुदा मनुष्य ओकरो स' बदतर होइछ। बेर-बेर एके अकृत्य के दोहराबैत अछि।
आब अपने बारे मे कहै छी। कतेको दुर्गुण स' भरल छी। जनै छी जे ई त्याज्य अछि।  मुदा छुटि नहि रहल अछि। निकोटिन पूर्ण रूपेण छोर' चाहैत छी , छुटि  नहि  रहल अछि। तीन महिना स' पान-जर्दा छोड़ने छलहुँ, दुर्गा पूजा मे गाम गेलहुँ त' फेर खा लेलहुँ।  एखन फेर छूटल अछि। ' ज्ञानिनामपि चेतान्सि देवी भगवती हि सा।  बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।'- भगवती महामाया ज्ञानियो के चित्त के बलपूर्वक खीचक' मोह मे जकरि दैत छथिन्ह।   

Tuesday, October 7, 2014

माँ दुर्गे

माता आद्याशक्ति हैं। सृष्टि के सर्जन, पालन एवं विनाश के मूल आधार ये ही हैं। श्रद्धा-भक्ति के साथ माँ के ध्यान भजन से इनकी कृपा तुरत प्राप्त होती है। " तामुपैहि महाराज शरनम् पर्मेश्वरीम् । आराधिता सैव नृणान्  भोग स्वर्गापवर्गदा।"आराधना से प्रसन्न होकर भोग, स्वर्ग और मोक्ष सहज ही प्राप्त हो जाता है। सकाम भक्त राजा सुरथ ने अपना साम्राज्य पुनः प्राप्त किया और अगले जन्म के लिए भी नष्ट न होनेवाला राज्यप्राप्ति का वर पाया। वैश्य संसार से खिन्न और विरक्त हो गया था। साथ ही वह वुद्धिमान भी था। ऐसे अवसर पर तुच्छ-नाशवान चीज़ नहीं मांगकर, ममता और अहंतारूप आसक्ति का नाश करनेवाला ज्ञान माँगा।