Sunday, November 3, 2013

Diwali, 2013


 'Asato maa sadgamay.Tamso maa jyotirgamay. Mrityormaamritangamay '. Triumph of positive attitudes over negatives. Victory of
the good over evils. Defeat of false by truth. Cleaning of inner and outer portions from dirt. Mosquitoes and other germs
which get birth in the rains are totally destroyed this day. But this benefit can be achieved only when we celebrate it
in a pious way to worship Lakshmi and Ganesh. We have to take oath to light lamps of only ghee and not of any other injurious
material. Ghee lamps purify the atmosphere where as others pollute it.
                                            The real Diwali celebration is to burn all demerits of inner and outer parts and illuminate the good character. Love all creatures, remain on the path of truth are the teaching for the day. ------------------------------------------- HAPPY DIWALI. 

Saturday, November 2, 2013

बजरंगबली

  हनुमान का  दास्य-भाव अनुपम है।  'दासोहं कौशलेन्द्रस्य----'. ब्रह्माण्ड में दास्य-भाव का ऐसा उदाहरण दुर्लभ है. सर्वशक्तिमान रहते हुए दासत्व का ऐसा अभिनय विश्वमंच पर अनुपम है. वे एकादश रूद्र हैं, इस दृष्टि से राम से किसी भी मायने में कम नहीं हैं. लेकिन अभिनय के लिए जो पार्ट मिला है उसे आदर्श ढंग से पूरा करना है।
                                                       श्वामी का रोल भी कोई कमजोर आदमी नहीं कर रहा है। वह हृदय  से कृतज्ञ है। आज के मालिक की तरह यह नहीं कहता /सोचता कि नौकर का काम ही सेवा करना है। शिव भाव से सभी जीवों को देखने वाला राम अपने अनुज से कहता है -'भरत भाई , कपि से उऋण हम नाहीं'। हनुमान के विना रामायण कुछ दूसरा ही होता / नहीं भी होता। सीता का पता कौन लगाता ? संजीवनी कौन लाता और लक्ष्मण को कौन जिलाता? अहिरावण के घर से राम लक्ष्मण को कौन लाता ?
अंदर में ज्वालामुखी रखते हुए कितनों में धरती की धीरता / गम्भीरता है ? जब तक जांबवान जैसा कोई  वुजुर्ग आदेश / याद न दिलावे तब तक पहल न करने की शिष्टता हनुमान में ही हो सकती है-' का चुप साधि रहौं बलवाना, पवन तनय बल पवन समाना'। और जब पवन नंदन को याद दिला दिया / ज्वालामुखी को उभार  दिया / सोए शेर को जगा दिया  तो फिर उसे कौन रोक सकता है ? ब्रह्मास्त्र विना लक्ष्य-वेध के लौट नहीं सकता।
                                                             ' मर्यादा का सम्मान, वुद्धि का समुचित उपयोग और लक्ष्य प्राप्ति के विना विश्राम नहीं करना' के मूर्त रूप हैं हनुमान- "राम काज किन्हे विना मोहि कहाँ विश्राम"?
                     लंका दहन के वाद सीता को कंधा पर लाद  कर ला सकते थे, लेकिन अति उत्साहित होकर भी मर्यादा की रक्षा और मालिक के आदेश के विना अपने मन से कोई निर्णय नही लेना, हनुमान जैसा दास ही कर सकता है।  उन्हें केवल पता लगाना काम था, लाना नहीं। फिर मालिक के मन की बात मालिक जाने।  फिर राक्षस कुल का नाश भी तो करना था। अगर वे सीता को ले आते तो राक्षसों का नाश कैसे होता? अति उत्साह में कई नौकर /व्यक्ति किया कराया चौपट्ट कर देते हैं। आदेशकर्ता का ज्ञान अथाह है। आदेशपाल को केवल आज्ञापालन करना है। कभी-कभी  आदेशपाल अपनी छोटी वुद्धि से आदेश का मीन-मेख निकालने लगता है और अनर्थ कर डालता है। परसुराम की गरणा दसावतार में है। एकदिन उनके पिताजी पूजा पर बैठे हुए थे। उनकी माँ नर्मदा से जल लाने गयी थी। राजा सहसबाहु नदी में अपनी रानियों के साथ जल-क्रीड़ा कर रहा था। परसुराम की माँ जलक्रीड़ा देखने लगी। उनके मन में पाप का उदय हो गया।  साधारण मानव की तरह सोचने लगी कि काश! मैं भी रानी होती और राजा के साथ जलक्रीड़ा करती। योगी के साथ कष्ट के शिवा क्या मिला ? ऐसी  खो गयी कि समय का ख्याल ही न रहा।पूजा में काफी विलम्ब हो गया। पति आग बबूला ! सुधि में वापस आने पर जल्दी-जल्दी जल लेकर पहुँची। विलम्ब का कारण पूछने पर कुछ जवाब न दे सकी। योगी त्रिकाल-दर्शी। ध्यान में जाकर सारी बातों को समझ गए। क्रोध में अपनी सौ पुत्रों को बुलाते हैं। सबसे बड़े पुत्र को कहते हैं कि माँ का सर काटो। उसने ऐसा करने से इंकार कर दिया। इसी तरह निन्यानवे पुत्रों ने आज्ञा मानने से इनकार कर दिया। अंत में सबसे छोटे पुत्र परसुराम  बुलाया। उसने अपना फरसा उठाया। भाईओं के विरोध करने पर पहले एक-एक कर निन्यानवे भाइयों का बध किया, फिर माँ का सर धर से अलग कर दिया। पिता अति प्रशन्न हुए और वरदान माँगने को कहा। परसुराम ने अपनी माँ और  निन्यानवे भाइयों को जिला देने का वरदान माँगा। ऋषि प्रसन्न होते हैं और सबको जिला देते हैं। ऋषि प्रश्न करते हैं - " पुत्र तुमने ऐसा क्रूड काम कैसे किया" ? परसुराम - " पिताजी, मुझे आपकी शक्ति पर पूरा भरोशा था। ऐसा करने से आपकी बात भी रह गयी, माँ को पाप का दंड भीे मिल गया और मेरी माँ और सारे भाई पूर्ववत रहे।" परसुराम के पिता जमदग्नि ऋषि की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। उनका पुत्र परिक्षा में प्रथम श्रेणी में प्रथम आया था। ऐसा आदेशपाल चाहिए जिसे आदेश कर्ता  पर पूरा विश्वास हो।  और आदेश करता भी राम, जमदग्नि सदृश हो जो अपने आदेश के बारे में पूरी जानकारी रखता हो।  निर्दोष आदेशपाल/ दूत न फंसे। ब्रह्मास्त्र वही चलावे जो वापस लाना भी जाने। अस्वत्थामा के सदृश न हो जो केवल चलाना सीख लिया पर लौटाने की जानकारी नहीं। ऐसे में अनीति का  काम हुआ और अपना तेज गमाकर दर्द के मारे, मारे-मारे फिर रहा है।   
                                                    पवनसुत का  बाली का साथ न देकर सुग्रीव के साथ रहना गरीबों का पक्ष लेना सिद्ध करता है । दुष्ट /अनीति का पक्षधर कितना भी वलवान क्यों न हो, उसका विरोध ही हनुमान का पूजन होगा। कुछ  व्यक्ति काम से जवाब देते हैं । कुछ लोग काम कुछ नहीं करते, केवल ढिंढोरा पीटते हैं। हनुमान जाति के जीव प्रथम कोटि के होते  हैं। 'राम काज कीन्हें विना मोहि कहाँ विश्राम'। वुद्धि-विवेकी दूत के बल पर ही राम जैसे लोग विजयी होते हैं और रावण सदृशों की पराजय होती है। रावण अहंकार का द्योतक है जिसकी पराजय निश्चित है। राम विनम्रता,मर्यादा, विवेक और सत्य का द्योतक है जिसकी विजय निश्चित है।  दूत(हनुमान ) चतुर इतना कि अपने असली रूप में छान-वीन करने के बाद ही प्रकट होते हैं। चाहे राम से प्रथम भेट का अवसर हो, विभीषण भेट हो, अशोक वाटिका में सीता से भेट करना हो अथवा लंका में प्रवेश का समय  हो, हमेशा रूप बदल कर ही जाते हैं।      
                              बल ,वुद्धि , विद्या का जहां मिलन होता है , वहीं हनुमान /ज्ञान का वास होता है। केवल बल पाशविकता -रावण, कंस, मधु कैटभ ,महिषासुर , शुम्भ-निशुम्भ को पैदा करता है। केवल वुद्धि  धूर्तता, चालाकी-सियार भाव, काक भाव पैदा करता है। केवल विद्या बौद्धिकता बढ़ाती है, ज्ञान नहीं; अहंकार में वृद्धि होती है और व्यक्ति सत्य से दूर भाग जाता है। बलहीन विद्या, वुद्धि कायरता ही बढ़ाते हैं।  जब तीनो एक साथ रहते हैं तभी हनुमान प्रकट होते हैं , ऋणात्मक भावों का नाश होता है और लोक कल्याण का राज्य, राम-राज्य स्थापित होता है।         -------------ओम् श्री   पवननंदनायस्वाहा।