Sunday, September 16, 2012

अवान्छित-पाहुन (6)

                           कुसियार'क रस देखि मोन ठन्ढेवाक इच्छा व्यक्त केलक. संग्रहालयक चहारदिवारिक आगू गाछ सबहक छाहरि मे दू गिलाश पीलहु. रस पिबैत काल एकटा अपरिचित लग मे आयल. बाजल- हम गाइड छी, मात्र 5 रुपैया मे संम्पूर्ण सारनाथ घुमा देव. हम सशन्कित भ' मना केलिऐक- नै-नै, हमरा लग पाइ-कौडी नहि अछि; हम अपने स' घूमि लेब, अहा हमर पिङ्ड छोडू. मुदा ओ मङ्नीएके घुमाब' पर तैयार भ' गेल, मात्र एक कप चाह पिया देवाक आग्रह केलक. हमरा सनक शुद्धा आदमी; विसवास क' लेलिऐक, ई नहि सोच' लगलहु जे ऐ घोर कलियुग मे विना लोभ के कियो नहि अहाक पाछू घुमि सकैत अछि. ओ हमरा पश्चिम भागक दक्छिन-उत्तर सडक पर ल' गेल. खुदाई-स्थल देखाइ छल, मुदा रस्ता सुनसान छल. हमरा सन्देह भेल आ हम चोट्टे घूमि क' तेजी स' दक्षिन दिसा मे भगलहु. ओ बहुत सोर पारलक मुदा हम ओकरा दिस तकबो नहि केलहु. कुसियार बेच'बला लग आबि गेलहु जत' बेसी भीड छल. ओतहि पूरा सारनाथक जानकारी पाबि, सन्ग्रहालय, ख़ुदाई-स्थल, चिडिया-घर सब ठाम एसगरे घुमलहु. एसगर घूमक आनन्द वर्णनातीत होइछ. ने कियो रोक'बला आ ने टोक'बला.
मोन परिगेल पाण्डीचेरीक यात्रा। एकटा आस्ट्रेलियन भेट भेल छल । हम गप्पक क्रम मे पूछि देने छलिऐक-"आर यू एलोन?" चोट्टहि उत्तर देलक -"जर्नी एलोन इज़ दी बेस्ट". ओहि समय ओकर बात पर ध्यान नहि देलिऐक, हम दू गोटे छलहु। कतेको बेर विभिन्न विषय पर मत-भिन्नता भ' जाइत छल। कतेको बेर इच्छा के विपरीत यात्रा/कार्य कर' पड़ल। गांधी जी सेहो एसगर रहवाक अधिक महत्व देने छथि। ज' एसगर रहब मुश्किल हो त' दोसगर, मुदा ताहि स' बेशी कदापि नहि।
  आइ एसगर मे ओकर बात सही बुझा रहल अछि। कियो व्यवधान कर'बला आइ  नहि अछि। जत' मोन हो जाउ, जाहि वस्तुक इच्छा हो खाऊ। एसगर मे लोक अपना असली घर (हृदय ) मे रहि सकैत अछि मुदा समूह मे सान्सारिकताक आनन्द ल' सकैत अछि, आत्मस्थ भेनाइ मुश्किल छैक. ऐ मामला मे हम गलत भ' सकै छी। सत्संग के सामुहिक प्रचलन छैक । अनेको सम्प्रदाय मे  सामुहिक पूजा-अर्चना होइछ।  -------------